Wednesday, 1 February 2012

का कही हम बेटिहा हई


का कही हम बेटिहा हई?

कड़क सर्दी में ठिठुरत बानी
एक-एक पइसा जोडत बानी।
जेठ महिना में भी  तपनी,
हर तराजू में खुद के तोलत बानी।

ना जाने का मांगी उ सब,
मांग के भी जिए दी का?
बेटी जाने रोई की जिही,
रोज एही में मरत बानी।

जी गइल जो भाग ओकर,
मर गइल त कुभाग हमार।
जिए से जादा मरला के 
हौसला खुद के देवत बानी।




स्वाति वल्लभा राज







13 comments:

  1. ओह...क्या लिखा है आपने
    कविता बहुत अच्छी लगी...!

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  2. मार्मिक ... आंचलिक भाषा में अनुभूति दिल से निकली हुयी लगती है ...

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  3. जी गइल जो भाग ओकर,
    मर गइल त कुभाग हमार।
    जिए से जादा मरला के
    हौसला खुद के देवत बानी।

    बहुत ही मार्मिक पंक्तियाँ हैं।

    सादर

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  4. dil ko choo gai aapki rachna bahut marmik.

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  5. comment se wordverification hata dijiye comment karne me aasani hogi.

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  6. जी गइल जो भाग ओकर,
    मर गइल त कुभाग हमार।
    जिए से जादा मरला के
    हौसला खुद के देवत बानी।

    बेहद सार्थक ..

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  7. जी गइल जो भाग ओकर,
    मर गइल त कुभाग हमार।
    बिल्‍कुल सटीक पंक्तियां

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  8. जी गइल जो भाग ओकर,
    मर गइल त कुभाग हमार।

    ....बहुत मार्मिक प्रस्तुति...

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  9. थोडा समझने में कठिनाई हुई ..पर मूल भाव समझ में आ गया .. मार्मिक चित्रण .

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    1. This comment has been removed by the author.

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    2. ******************************
      बेटी है ना, क्या कहूं मैं!

      कड़क सर्दी में ठिठुरता हूँ मैं,
      एक-एक पैसे जोड़ता हूँ मैं,
      जेठ महीने में तपकर भी,
      कितने तराजूओं में तुलता हूँ मैं!

      न जाने क्या-क्या मांगेगे,
      तबपर भी क्या जीने देंगे?
      बेटी जाने रोएगी या हँसेगी,
      यही सोच-सोच मरता हूँ मैं!

      जी गयी, तो उसका सौभाग्य,
      मर गयी तो हमारा दुर्भाग्य,
      जीने से ज्यादा मरने का,
      खुद को हौसला देता हूँ मैं!

      स्वाति वल्लभा राज
      ******************************************

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  10. ना जाने का मांगी उ सब,
    मांग के भी जिए दी का?
    बेटी जाने रोई की जिही,
    रोज एही में मरत बानी।

    हमनी के प्रयास रही, त बिलकुल ई जे कुप्रथा बा समूचा निष्मूल हो जाई!
    बहुते मर्मस्पर्शी रचना! भोजपुरी में लिखे खातिर अलग से बधाई.

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