का कही हम बेटिहा हई?
कड़क सर्दी में ठिठुरत बानी
एक-एक पइसा जोडत बानी।
जेठ महिना में भी तपनी,
हर तराजू में खुद के तोलत बानी।
ना जाने का मांगी उ सब,
मांग के भी जिए दी का?
बेटी जाने रोई की जिही,
रोज एही में मरत बानी।
जी गइल जो भाग ओकर,
मर गइल त कुभाग हमार।
जिए से जादा मरला के
हौसला खुद के देवत बानी।
स्वाति वल्लभा राज
ओह...क्या लिखा है आपने
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी लगी...!
मार्मिक ... आंचलिक भाषा में अनुभूति दिल से निकली हुयी लगती है ...
ReplyDeleteKHUD KO HAUSLA DE LIYA HAI TO ZEE HI JAYEGI BAANI.
ReplyDeleteजी गइल जो भाग ओकर,
ReplyDeleteमर गइल त कुभाग हमार।
जिए से जादा मरला के
हौसला खुद के देवत बानी।
बहुत ही मार्मिक पंक्तियाँ हैं।
सादर
dil ko choo gai aapki rachna bahut marmik.
ReplyDeletecomment se wordverification hata dijiye comment karne me aasani hogi.
ReplyDeleteजी गइल जो भाग ओकर,
ReplyDeleteमर गइल त कुभाग हमार।
जिए से जादा मरला के
हौसला खुद के देवत बानी।
बेहद सार्थक ..
जी गइल जो भाग ओकर,
ReplyDeleteमर गइल त कुभाग हमार।
बिल्कुल सटीक पंक्तियां
जी गइल जो भाग ओकर,
ReplyDeleteमर गइल त कुभाग हमार।
....बहुत मार्मिक प्रस्तुति...
थोडा समझने में कठिनाई हुई ..पर मूल भाव समझ में आ गया .. मार्मिक चित्रण .
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Deleteबेटी है ना, क्या कहूं मैं!
कड़क सर्दी में ठिठुरता हूँ मैं,
एक-एक पैसे जोड़ता हूँ मैं,
जेठ महीने में तपकर भी,
कितने तराजूओं में तुलता हूँ मैं!
न जाने क्या-क्या मांगेगे,
तबपर भी क्या जीने देंगे?
बेटी जाने रोएगी या हँसेगी,
यही सोच-सोच मरता हूँ मैं!
जी गयी, तो उसका सौभाग्य,
मर गयी तो हमारा दुर्भाग्य,
जीने से ज्यादा मरने का,
खुद को हौसला देता हूँ मैं!
स्वाति वल्लभा राज
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ना जाने का मांगी उ सब,
ReplyDeleteमांग के भी जिए दी का?
बेटी जाने रोई की जिही,
रोज एही में मरत बानी।
हमनी के प्रयास रही, त बिलकुल ई जे कुप्रथा बा समूचा निष्मूल हो जाई!
बहुते मर्मस्पर्शी रचना! भोजपुरी में लिखे खातिर अलग से बधाई.