Sunday 8 December 2013

धड़कन में ''आप '' है




मन मयूर सा नाचे, अंखियों में अविरल धार है 
सच्चाई और निष्ठा के आगाज़ का अंदाज़ है
कब तक चुप रहते,सहते-कुढ़ते 
बेईमानी ना पल भर स्वीकार है । 

अंगड़ाई लेकर उठे हो अब की 
फिर तुम कहीं ना सो जाना 
सपूत हो,सपूत हीं रहना 
लालच के दरिया में तुम भी,हमसे कहीं ना खो जाना । 

कीचड़ में खिलने का साहस 
करता है केवल ''अरविंद''  हीं 
आत्म-विश्वास से लबरेज मन , सत्य पथ- प्रशस्त है 
साँसों में आस और धड़कन में ''आप '' है । 

स्वाति वल्लभा राज 

Tuesday 26 November 2013

इंसान बानी




आँख बा पर आन्हर बानी 
कान बा पर बहिर  बानी 
बुझतो बानी 
पर मानत नइखीं । 
गलल जा तानी 
पर मद में बानी,
पिघल तानी 
पर दम्भ में बानी । 
बिसरा देहनी सब सहूर तबो 
जानल मानल इंसान बानी । 

स्वाति वल्लभा  राज