हमें कोई हक नहीं है उंगली उठाने का,उन मजबूरियों को ढोते शरीर मात्र पर ;जो ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना के जीवन की रक्षा में हर पल एक आग में जल रहीं हैं|देह-व्यापार से घृणा करें,उन दलालों से घृणा करें,उन कारणों और परिस्थितियों से घृणा करें,ना की उसकी शिकार आत्माओं से....
कहाँ रहल ई समाज जब
भूख से बचपन बिलखत रहल|
पढ़े के उम्र मे दर-दर,
काम खातिर भटकत रहल|
जरुरत ता पूरे ना भईल,
सपना,ईक्षा भी हंसत रहल|
देह छुपाये के मौसम में
चिथड़ा तन के ढकत रहल|
तार-तार हो गईल आत्मा
लाश जो तन के ढोवत रहल|
आज जब लाश बेंच देहनी ता
समाज सवाल उठावत रहल|
कौनो हक नइखे केहू के
साथ ना जब कोई देहत रहल|
पेट की आग खातिर जब,
देह खुद के ही बेंचत रहल|
स्वाति वल्लभा राज...
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