Thursday, 29 December 2011

उठ जाग मुसाफिर भोर भयो...


भोरे-भोरे परनाम सबकरा के...ई हामार एक ठो छोट कोशिश बा आपन माटी खातिर कुछो करे खातिर| भोजपुरी भाषा जौन आपन मिठास खोवत जाता औरी आधुनिकता के रंग में रंगात  जाता ओकर असली स्वाद से अवगत करावे के प्रयास बा| आशा बा सब लोगन के साथ मिली|
ता सुरुवात ४ पंक्ति  से.....

फेर आज भोर भइल,
उजियारा चाहूँ ओर भइल |
हिरदय के ख़ुशी मगर मरत बा,
अखबार खोले से डरत बा|
फेर उही कुल देखे पढ़े से जलत बा|
कब होई उ भोर जब साचे
अंखिया खुली सबनी के
फेर साचे उ भोर,भोर लागी तब ही के|

स्वाति वल्लभा राज...

1 comment:

  1. बहुत नीक वा, इस भाषा की मिठास का जबाब नहीं बधाई
    (कृपया वर्ड वैरिफिकेसन हटा दीजिये)

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