भोरे-भोरे परनाम सबकरा के...ई हामार एक ठो छोट कोशिश बा आपन माटी खातिर कुछो करे खातिर| भोजपुरी भाषा जौन आपन मिठास खोवत जाता औरी आधुनिकता के रंग में रंगात जाता ओकर असली स्वाद से अवगत करावे के प्रयास बा| आशा बा सब लोगन के साथ मिली|
ता सुरुवात ४ पंक्ति से.....
फेर आज भोर भइल,
उजियारा चाहूँ ओर भइल |
हिरदय के ख़ुशी मगर मरत बा,
अखबार खोले से डरत बा|
फेर उही कुल देखे पढ़े से जलत बा|
कब होई उ भोर जब साचे
अंखिया खुली सबनी के
फेर साचे उ भोर,भोर लागी तब ही के|
स्वाति वल्लभा राज...
बहुत नीक वा, इस भाषा की मिठास का जबाब नहीं बधाई
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