मन के आँगन सून पिया रे !
सगरो भाव कइसन मुरझाइल।
रंगरेज भी रंग ना पाईल
सगरो रंग अइसन मैलाईल।
हूक उठावे कोयल के कूक
जियरा में चीर लगावे
मन तक कौनो बात ना पहुचे
कइसन बैरी किल्ली चढ़ावे
हम नदिया,पिया प्यासल बानी
बूंद में तरास समेटे
कैसन भाग लिखल बिधाता
कोरा पन्ना में लपेटे |
दूरी टीस पे बीस भईल अब
सगरो राग कइसन गुन्गाइल|
बदरा खाली गरजत बाटे
सावन भी अइसन सुखाइल|
स्वाति वल्लभा राज
सुन्दर रचना।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : मेरी भोपाल यात्रा (दूसरा दिन) - साँची का स्तूप और साँची के बौद्ध स्मारक - 1
विरह कि कोमल अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसुगंध में लिपटी मार्मिक रचना
ReplyDeleteBahut khoobsoorat rachna... sundar bhav
ReplyDeleteलगता है कि काफी समय से कोई पोस्ट ब्लाग पर नहीं डाली। सक्रिय लेखन करती रहें। अब तो गूगल भी हिंदी ब्लाग्स को सपोर्ट करने लगा है। आगे चल कर इस पर विज्ञापन मिल सकते हैं।
ReplyDeleteलगता है कि काफी समय से कोई पोस्ट ब्लाग पर नहीं डाली। सक्रिय लेखन करती रहें। अब तो गूगल भी हिंदी ब्लाग्स को सपोर्ट करने लगा है। आगे चल कर इस पर विज्ञापन मिल सकते हैं।
ReplyDeleteजी ब्लॉग पर आने के लिये दिल से आभार ...भोजपुरी में काफी दिनों से नहीं लिखा है कोशिश है फिर से शुरू करूँ ...:)
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