Sunday, 16 February 2014

मन के आँगन सून पिया रे !



मन के आँगन सून पिया रे !
सगरो भाव कइसन मुरझाइल। 

रंगरेज भी रंग ना पाईल 
सगरो रंग अइसन मैलाईल। 

हूक उठावे कोयल के कूक 
जियरा में चीर लगावे 
मन तक कौनो बात ना पहुचे 
कइसन बैरी किल्ली चढ़ावे 

हम नदिया,पिया प्यासल बानी
बूंद में तरास समेटे
कैसन भाग लिखल बिधाता
कोरा पन्ना में लपेटे |

दूरी टीस पे बीस भईल अब
सगरो राग कइसन गुन्गाइल|


बदरा खाली गरजत बाटे
सावन भी अइसन सुखाइल|

स्वाति वल्लभा राज

Sunday, 8 December 2013

धड़कन में ''आप '' है




मन मयूर सा नाचे, अंखियों में अविरल धार है 
सच्चाई और निष्ठा के आगाज़ का अंदाज़ है
कब तक चुप रहते,सहते-कुढ़ते 
बेईमानी ना पल भर स्वीकार है । 

अंगड़ाई लेकर उठे हो अब की 
फिर तुम कहीं ना सो जाना 
सपूत हो,सपूत हीं रहना 
लालच के दरिया में तुम भी,हमसे कहीं ना खो जाना । 

कीचड़ में खिलने का साहस 
करता है केवल ''अरविंद''  हीं 
आत्म-विश्वास से लबरेज मन , सत्य पथ- प्रशस्त है 
साँसों में आस और धड़कन में ''आप '' है । 

स्वाति वल्लभा राज 

Tuesday, 26 November 2013

इंसान बानी




आँख बा पर आन्हर बानी 
कान बा पर बहिर  बानी 
बुझतो बानी 
पर मानत नइखीं । 
गलल जा तानी 
पर मद में बानी,
पिघल तानी 
पर दम्भ में बानी । 
बिसरा देहनी सब सहूर तबो 
जानल मानल इंसान बानी । 

स्वाति वल्लभा  राज 

Sunday, 18 November 2012

छठ गीत



घटवा पे डूबी उगल बढल जाला,
पनिया में जहर माहुर बितुरल जाला |
सुनी न लोगी
छठी के दिन आइल 
घटवा के दुबिया गढ़ी
पनिया के साफ़ करिल |

खरना के दिनवा निजका आवल जाला
अरगा के बेरा हाली निजकल जाला|
फल दौरा सुपलिया
ईंखवा के साजल जाइल
चंदनी से कोसी 
सुन्दर ढाकल जाईल |

मनवा में हरषी हरषी भूखल जाला
आदित के भोरे सांझी अरगी जाला|
सुनी ना, सूरज देव
जल्दी जल्दी उग गईल
छठी के परव पावन
खूब सुन्दर भईल|

स्वाति वल्लभा राज

Wednesday, 10 October 2012

शाप




आजो तहार बाट जोह तानी
नींद में भी सौ बार जागत बानी|
सिसकत सिसकत बीत गईल दिन
पर आस के अबहो हिसाब देत बानी|

औरत भईला के शाप भोग तानी
अंचरा में दूध अछईत भूख से मरत बानी|
छोह जो तहरा धईलस जुआ शराब के
आपन  'द्रौपदी'  नाम से डरत बानी|

कैसन ई कुली नशा इतना रमेला
धतुरा नियर सब कुछ भुला देला|
सैकड़ो घर बर्बाद भईल जेसन,
वईसन अपनों घर के दुर्गति सोच तानी|

स्वाति वल्लभा राज

Thursday, 14 June 2012

बेटा आ बेटी



अईला ना काहे तू
छोड़ल पीहर में|
नेहवा के बंधन तोड़ल
छोड़ल बीहर में|

 

भयीनी कुलच्छनी हम
बेटा जो न जननी|
ससुरा से खेदयिनी हम
रौउवो तो न मननी|

 

तीन गो बेटी जो भईल
हमार कौन दोष रहल?
सेंदुर के भी झूठा कईनी
ऐसन कौन छोंछ रहल?


बेटा खातिर मोह छोड़वनी
बिसरल कैसे प्रीत के रतिया?
बेटी संग मेहरारू भुलैनी
बेटा में कैसन,अईसन बतिया?

स्वाति वल्लभा राज

Tuesday, 13 March 2012

मृत्यु-भोज



1 बछिया,खटिया और साईकल
सूते के सब सामान|
कितना सेर खाए के अनाज,
इंतजाम करी हम जजमान|

सारा गाँव के भोज कराई
दी ११ ब्राम्हण के दान|
खाए के खुद औकात ना
नियति ई बड़ा बेईमान|

 
साया उठल बाप के हमसे,
दर्द केहू के दिखत नाहीं|
निबही कईसे ई रीत अब
मर्म केहू के सुझत नाहीं|

बेटी के कपड़ा उधरल बा,
बेटा भूख से बिलखत बा|
मेहरारू के ईलाज नाहीं,
दाल-रोटी के किल्लत बा|


मरला पे भोज कईसन
मातम में उत्सव काहें?
मरला के बाद भी
जिंदा रहे के श्राप काहें?


कर्जा काढी के रीत निभाई,
ना तो कुल-भ्रष्ट हमार|
दाना-पानी बंद तब,
मृत्यु-भोज प्रान ली हमार|

स्वाति वल्लभा राज