1 बछिया,खटिया और साईकल
सूते के सब सामान|
कितना सेर खाए के अनाज,
इंतजाम करी हम जजमान|
सारा गाँव के भोज कराई
दी ११ ब्राम्हण के दान|
खाए के खुद औकात ना
नियति ई बड़ा बेईमान|
साया उठल बाप के हमसे,
दर्द केहू के दिखत नाहीं|
निबही कईसे ई रीत अब
मर्म केहू के सुझत नाहीं|
बेटी के कपड़ा उधरल बा,
बेटा भूख से बिलखत बा|
मेहरारू के ईलाज नाहीं,
दाल-रोटी के किल्लत बा|
मरला पे भोज कईसन
मातम में उत्सव काहें?
मरला के बाद भी
जिंदा रहे के श्राप काहें?
कर्जा काढी के रीत निभाई,
ना तो कुल-भ्रष्ट हमार|
दाना-पानी बंद तब,
मृत्यु-भोज प्रान ली हमार|
स्वाति वल्लभा राज